Sunday, May 19, 2024

हीन भावना से बाहर आने का विज्ञानं

परमात्मा की महिमा का अभ्यास आप को हीन भावना से हमेशा हमेशा के लिए बाहर निकाल देता है . कैसे ? . जब आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर जीवन की सभी क्रियाये करने लगते है तो आप को हीन भावना क्या होती है और इसका जन्म कैसे होता है और यह कैसे विकसित होती है और इसे कैसे रूपांतरित किया जाता है इन सभी का वास्तविक ज्ञान आप को अनुभव में आने लगता है . जैसे जैसे हमारे मन और शरीर के बीच दूरी बढ़ती है हीन भावना बढ़ने लगती है . क्यों की दूरी बढ़ने के कारण हमारे शरीर में जड़ता बढ़ने लगती है और हम अपने आप को शरीर मानने लगते है और लोगो को भी हम शारीरिक दृष्टि से देखने लगते है . अब क्यों की वास्तविक सत्य यह है की हम शरीर नहीं है परन्तु अपनी जड़ता के कारण हम लोगों के माध्यम से किये जाने वाले व्यवहार को ही सच मान बैठते है और जो हमारे पुराने संचित कर्म है उन्ही के अनुरूप हम इस निर्णय पर खुद ही पहुंच जाते है की इतने लोग यदि हमारे में कमी बता रहे है या हमारी निंदा कर रहे है तो सच में कही ना कही मेरे में कमी जरूर है . और ऐसा लगातार करने के कारण हमारे मन की साइकोलॉजी वैसी ही बन जाती है . जिससे धीरे धीरे हमारी आँखे , कान , त्वचा अर्थात पूरी इन्द्रियाँ इसी साइकोलॉजी से विकसित हो जाती है और मन के गहरे तलो पर अपना प्रेक्षपण छोड़ती है . जो आगे चलकर सघन रूप लेकर शरीर के रूप में प्रकट होने लगती है . अब हम खुद ही अपनी चेतना शक्ति के माध्यम से यह अर्थ लगाए की जो आँख मैं शरीर के साथ लेकर चल रहा हु वह तो अंधी है , सच देख ही नहीं पा रही है और कोई आकर मुझे यह कह दे की चलो मै आप को देखने वाली हीन भावना से  अभी मुक्त कर देता हु यदि आप मुझे इजाजत दे की मैं आप की यह आँख ऑपरेशन करके बाहर निकाल दू और फिर आप को एक ऐसा अभ्यास सीखा दू जिससे आप के शरीर मै दूसरी नयी आँख उगने लग जाए जो सच को देखती है . अर्थात यह नयी आँख हीन भावना को नहीं देखती है . तो क्या आप मुझे यह करने की इजाजत देंगे ? . कभी भी नहीं . क्यों की आप को परमात्मा पर विश्वास ही नहीं है . आप अपने आप को शरीर मानकर चल रहे है . और आप ऐसा अनंत जन्मो से कर रहे है . इसलिए यदि आप हीन भावना से मुक्त होना चाहते है तो परमात्मा की महिमा का अभ्यास करे ताकि धीरे धीरे आप के मन , बुद्धि जगने लगे और प्रभु से एकता का अनुभव होने लगे . जैसे जैसे आप के और प्रभु के बीच दूरी घटने लगेगी हीन भावना के ये काले बादल छटने लगते है और एक दिन ऐसा आएगा जब आप 100 % हीन भावना से मुक्त हो जाओगे . यह परमात्मा की गारंटी है . धन्यवाद जी. मंगल हो जी .

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शरीर मन आत्मा और परमात्मा कैसे काम करते है - भाग 1

शरीर मन आत्मा और परमात्मा कैसे काम करते है - भाग 1 | परमात्मा की महिमा इस वीडियो में यह समझाया गया है की शरीर की रचना कैसे होती है , मन क्या है , आत्मा क्या है , परमात्मा क्या है , खाना कितना खाना चाहिए , पानी कितना पीना चाहिए , मन कैसे काम करता है , बुद्धि कैसे काम करती है , भगवान ने संसार क्यों बनाया है , आँखे कैसे सुरक्षित हो , कान कैसे सुरक्षित हो , नाक के रोगो से कैसे बचे , श्वास से कैसे जुड़े , परमात्मा शरीर को कैसे चलाते है , आत्मा शरीर को कैसे चलाती है , आत्मा और परमात्मा में क्या सम्बन्ध है , द्वंदों से मुक्ति कैसे मिले , हमे यह जीवन क्यों मिला है , हम समस्याओं से परेशान क्यों हो जाते है , हमे डर क्यों लगता है , हम बीमारी से डरते क्यों है , शरीर को जीवन शक्ति कहा से मिलती है, हम बोर क्यों होते है , हम हर समय खुश क्यों नहीं रह पाते है , क्या हम शरीर है , क्या हम आत्मा है .

Saturday, May 18, 2024

बिना शर्त प्रेम क्यों जरुरी है ?

 जब हम परमात्मा की महिमा का अभ्यास करते है अर्थात सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्रता बढ़ाते हुए जीवन की सभी क्रियाये करते है तो हमे हमारे शरीर की भीतरी गंध , सुगंध का अनुभव होने लगता है . साथ ही सर्वव्यापकता का भी अनुभव होने लगता है . हमारा पेट ख़राब है तो हमे पेट की भीतर की सड़न की गंध आने लगती है , या यदि शरीर में कही भी कोई गाँठ है तो उसके भीतर जो पस पड़ गया उसकी भी गंध आने लगती है , हमारे खून , चमड़ा , श्वासो , मांस , हड्डियों इत्यादि की गंध का हमे अनुभव होने लगता है . जब हम इस गंध से घृणा करते है तो इसके स्त्रोत में विकृति आने लगती है क्यों की हमने माया का अपमान किया है . वह प्रभु की ही गंध है और हमने इसे दुर्गन्ध मान लिया है. अर्थात जो है नहीं वह मान लिया इसलिए इस शरीर रचना के अस्तित्व को खतरा होने लगता है . इसीलिए तो परमात्मा कहते है की आप जैसे भी हो उसे ही पहले स्वीकार करो और बिना शर्त प्रेम करो . तभी भीतर से रूपांतरण शुरू होगा . इसीलिए तो शरीर में जो हमे कड़ापन , ढीलापन , थकान , आलस , या कुछ भी परिवर्तन होता है उसे बहुत ही प्रेम से परमात्मिक अनुभूति के रूप में स्वीकार करना बहुत जरुरी है यदि हमे शारीरिक बीमारियों से हमेशा के लिए मुक्ति चाहिए तो . ठीक इसी प्रकार हमे बाहरी लोगों से , और अन्य सभी जीवों से बिना शर्त प्रेम करना बहुत जरुरी है चाहे उन्होंने हमे किसी भी तरीके से परेशान किया हो या कितना भी नुक्सान हमे पहुंचाया हो . क्यों की उन सभी के रूप में परमात्मा स्वयं प्रकट हो रहे है . पर माया की शक्ति के कारण हमे वे सब अलग दिखाए पड़ते है और हम उनको अलग मानकर सत्य से विमुख हो जाते है और प्रेम करने की शक्ति खो देते है . क्यों की हम माया को सच मानकर प्रभु से विमुख हो गए और यही सबसे बड़ा कारण है की हमे इन कष्टों का सामना करना पड़ता है . आत्म ज्ञान का सही अर्थ यह होता है की हमने माया का भी सम्मान करना सीखा और ब्रह्मा के साथ भी रहे . बिना इस अभ्यास के हम बिना शर्त प्रेम करने में आंशिक रूप से तो सफल हो सकते है पर पूर्ण सफलता नहीं मिलती है . और शरीर को हम कष्टों में डालकर कहने लगते है की संसार में कोई किसी का नहीं है , शरीर नश्वर है , संसार नश्वर है , यहां दुःख ही दुःख है . यह सब बाते हम बार बार बोलकर हमारे मन में गहरे तलो पर जमा कर लेते है जिसे अवचेतन मन कहते है . फिर यही बाते धीरे धीरे पोषित होते हुए संस्कारो में बदल जाती है और सघन रूप लेने लगती है जिसे आम भाषा में शरीर कहते है . इस प्रकार शरीर रुपी इन संस्कारो को अभ्यास के माध्यम से दिव्य शरीर  में बदला जाता है जो बहुत ही मजबूत होता है और प्रकृति से अप्रभावित रहता है . पर फिर भी यदि हमारी इच्छा वर्तमान शरीर को दिव्य शरीर में बदलने की नहीं होकर केवल बीमारियों से मुक्ति प्राप्त करने की है और बिना रोगों के हम सामान्य जीवन जीना चाहते है तब भी यह अभ्यास करना बहुत जरुरी है . बिना शर्त प्रेम करना कोई एक दिन मे नहीं आता है पर यदि हम ठान ले तो फिर यह असंभव नहीं है . वैसे तो मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं है यदि उसे परमात्मा अर्थात खुद पर 100 % विश्वास है तो . क्यों की मनुष्य जीवित ही विश्वास के कारण है . अर्थात मनुष्य को यह विश्वास है की वह जिन्दा है , उसकी श्वास चल रही है , उसे उसका शरीर अनुभव में आ रहा है , उसे प्रकृति का अहसास हो रहा है , उसको माया के ऊपर विश्वास है . यहां बहुत ही ध्यान देने योग्य बात यह है की हमने कहा है की मनुष्य को माया पर विश्वास है इसलिए वह जिन्दा है . इसका अर्थ यह है की माया के पीछे जो सत्य छिपा है उस पर विश्वास है . जैसे हम घर परिवार में कहते है की हम तो ईश्वर की कठपुतली है अर्थात हमारा अलग से कोई अस्तित्व नहीं है . इसलिए सच में ना तो हमारा यहां कोई दुश्मन है और ना ही मित्र है बल्कि हम सब एक ही ईश्वर की संतान है और हमारे बीच केवल प्रेम का रिश्ता है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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क्या आप को पता है इस बात का ? पूरा देखे | परमात्मा की महिमा

क्या आप को पता है इस बात का ? पूरा देखे | परमात्मा की महिमा इस वीडियो में यह समझाया गया है की wi fi कैसे काम करता है , आप के moblie का अनलिमिटेड प्लान दूसरा भी use कर रहा है , इंटरनेट कैसे काम करता है , समय दूरी और द्रव्यमान होते ही नहीं है , हम सर्वव्यापी है , हर वस्तु सर्वव्यापी है , आप के माध्यम से बचाई गयी विधुत किसी गरीब के कैसे काम आती है , फालतू पैसे खर्च करना क्यों खतरनाक है , बिना मेहनत का पैसा गले का फंदा है , एक ही समय में ईमेल सब जगह कैसे पहुंच जाता है , मोबाइल पर बिना जरुरत के बात करना क्यों घातक है , संपन्न व्यक्ति सरकारी राशन छोड़कर पुण्य क्यों कमा लेता है , नौकरी के घंटे फिक्स करना क्यों जरुरी होता है , तेज दिमाग वाला व्यक्ति कमजोर का हिस्सा कैसे ले लेता है , बैंक में fd कराकर हम सेवा में योगदान कैसे देते है , प्रकृति के संसाधनों पर सबका बराबर अधिकार कैसे है .

Friday, May 17, 2024

मन को कैसे बदले इस विज्ञानं को समझे - भाग 3

मन को कैसे बदले इस विज्ञानं को समझे - भाग 3 | परमात्मा की महिमा इस वीडियो में यह समझाया गया है की किस प्रकार एक व्यक्ति शुगर की बीमारी के विचार को अपने मन से बाहर निकाले, मन में विचार कैसे जड़े जमाते है , शरीर स्वस्थ होने के दौरान कमजोरी क्यों आती है , मन को बदलने के लिए क्या करना चाहिए , मन को शक्ति कहा से मिलती है , मन एक ही बात को बार बार क्यों दोहराता है , ज्यादातर बीमारी के विचार ही क्यों आते है , जीवन शक्ति बीमारी को कैसे ठीक करती है , विचारो के प्रदुषण से कैसे बचे , लोगो का मुँह कैसे बंद करे , लोग हमारे मजे क्यों लेते है , हम लोगो को पहचानने में धोखा क्यों खा जाते है , तीसरी आँख को जगाने के लिए क्या करना होता है , आज्ञा चक्र पर ध्यान करने से क्या होता है , श्वास के ऊपर ध्यान करने से क्या होता है .

Thursday, May 16, 2024

मन को कैसे बदले इस विज्ञानं को समझे - भाग 2

मन को कैसे बदले इस विज्ञानं को समझे - भाग 2 | परमात्मा की महिमा इस वीडियो में यह समझाया गया है की जब विचार गहरे तल में जमा हो तो उसे कैसे बदले , बीमारी के विचार को कैसे भूले , एकाग्रता और ध्यान में क्या फर्क है , जीवन शक्ति क्या करती है , हम जिन्दा कैसे है , शरीर में सबसे ज्यादा जीवन शक्ति कहा से प्रवेश करती है , जीवन शक्ति से कैसे जुड़े , शरीर को कैसे बदले , मन को हम बदल क्यों नहीं पाते है , मनोचिकित्सक कैसे काम करता है , डॉक्टर बीमारी का पता कैसे लगाते है , मरीज को देखकर मनोचिकित्सक उसकी बीमारी का पता कैसे लगाते है , क्या हर बीमारी साइकोलॉजी से होती है , क्या बीमारी केवल वहम से होती है , विचार बीमारी को कैसे मजबूत करते है , क्यों हम कोई विचार बार बार याद करते है.

Wednesday, May 15, 2024

ये पीजिये अमृत तुल्य चाय

ये पीजिये अमृत तुल्य चाय | परमात्मा की महिमा ➤इस वीडियो में एक ऐसी चाय बनाने की विधि बताई है जो प्राकृतिक है , प्रभु को प्यारी है , शक्तिवर्धक चाय है , रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली चाय , पेट साफ़ करने वाली चाय , बॉडी सेल्स को रिपेयर करने वाली चाय , साइड इफेक्ट्स को ख़त्म करने वाली चाय , बॉडी को डीटॉक्स करने वाली चाय, गैस कब्ज दूर करने वाली चाय , अहिंसात्मक चाय , गुणकारी चाय , ताकतवर चाय , चाय से सिर दर्द दूर करे , मूड खुश करने वाली चाय. ➤बिना दूध की चाय , स्वादिष्ट चाय , पोस्टिक चाय , गजब की चाय , इस चाय के पिने के फायदे , शुगर दूर करने वाली चाय , बीमारियों से बचाने वाली चाय , ह्रदय को पवित्र करने वाली चाय , इस चाय से हाथ पैरो का दर्द गायब , इस चाय से शरीर में चमक , इस चाय से आँखों की ज्योति बढ़ती है , इस चाय से मन शांत होता है , इस चाय से जरुरी भूख लगती है , इस चाय से पाचनतंत्र मजबूत होता है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

हीन भावना से बाहर आने का विज्ञानं

परमात्मा की महिमा का अभ्यास आप को हीन भावना से हमेशा हमेशा के लिए बाहर निकाल देता है . कैसे ? . जब आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर ज...